खून से छलकता है दूध का ग्लास [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, भाग – 3, प्रविष्टि – 12]

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भाग-3 श्वेत-क्रांति से निकला नीला-विष


खून से छलकता है दूध का ग्लास

“दूध एक सफेद रंग का खून है, जिसे माँस-उद्योग धोखे से शाकाहारियों को पिला रहा है।”

क्या आप भी दूध को शाकाहार समझने की भूल करते हैं?

दूध को शकाहार बताने वाले सबसे अहम् तर्क यह देते हैं कि दूध से कोई जीवोत्पति नहीं हो सकती अतः वह माँसाहार नहीं कहा जा सकता। किन्तु निम्न तथ्यों को नकार दिया जाता है:

(i) दूध एक पशु-उत्पाद है, वह जानवरों से प्राप्त किया जाता है न कि वनस्पति से। दूध ज़मीन से उगने वाली शाक-सब्जी नहीं है तो फिर शाकाहार (शाक + आहार) कैसे हुआ?

(ii) दूध गाय के रक्त से बनता है। ये एक लिक्वीड-फ्लेश यानि कि एक तरल माँसाहार है। दूध एक विशेष समय स्रावित होने वाला ऐसा द्रव है जिसका आधार खून है। आतंरिक ग्रंथियां हारमोंस की उत्तेजना से प्रेरित हो कर खून से दूध का निर्माण करती है। दूध और खून का संगठन लगभग एक जैसा ही है। दूध में भी खून के घटक तत्वों की तरह पानी (लगभग 88%) की मात्रा सर्वाधिक होती है। इसके बाद प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईड्रेट आदि होते हैं।

(iii) एक दुधारू गाय की दुग्ध-ग्रंथियों में से 500 लीटर खून के बहने पर एक लीटर दूध बन पाता है।

(iv) दूध के उत्पादन के लिए एक स्वतन्त्र गाय को बंधक (पालतू) बनाया जाता है।

(v) दूध के उत्पादन के लिए गाय को बार-बार गर्भवती बनाना आवश्यक है। जब तक उसके बछड़ा पैदा नहीं होगा, वह दूध नहीं देगी। अतः उसे लगातार बलपूर्वक (उसकी इच्छा के विरुद्ध) गर्भवती बनाया जाता है, बार-बार प्रसव करा लगातार दूध देने पर विवश किया जाता है। निरंतर चक्रवत एक मशीन की भांति इन प्रक्रियाओं से गुजरने पर गाय का शरीर टूट कर क्षीण हो जाता है। पीड़ादायक कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया से बारम्बार गुजारने से दुर्बल और निर्बल हुए गाय का शरीर गंभीर रोगों का आसान घर बन जाता है।

(vi) गाय दूध अपने बछड़े के लिए देती है न कि आपके लिए। आपकी इच्छा-पूर्ति के लिए उसका दूध चुराया जाता है। गाय स्वेच्छा से कभी आपको दूध नहीं देती। क्या ये उसका शोषण नहीं?

(vii) दूध के विक्रय से होने वाले मुनाफे से ही गाय को उसका चारा खरीद कर खिलाया जाता है। जब गाय दूध देना बंद कर देती है या फिर कम दूध देती है तो कोई भी व्यवसायी उसको चारा खरीद कर ‘मुफ्त’ में नहीं खिला सकता। किसी भी गाय के जीवनकाल में इतना दूध कभी पैदा नहीं होता जिसके मुनाफे से उस गाय को उसके पूरे जीवन के लिए चारा खरीद कर खिलाया जा सके। अतः उस गाय के लिए डेयरी उद्योग के पास दो ही विकल्प हैं - या तो उसे कत्लखानों को बेच कर थोड़ा और मुनाफा बटोरा जाये या फिर उसे शहर की गलियों में कूड़ा खंगालने के लिए आवारा छोड़ दिया जाए, जहाँ अंततः वह प्लास्टिक की थैलियाँ खा भूख से तड़प-तड़प कर दम तोड़ देती है। ज़ाहिर है, पहले विकल्प को चुनने में एक व्यवसायी को अधिक मौद्रिक लाभ होता है।

(viii) श्वेत-क्रांति या ऑपरेशन फ्लड के जनक, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के संस्थापक और अमूल ब्रांड को स्थापित करने वाले डॉ. वर्गीज़ कुरियन ने स्वयं उपरोक्त बात को स्वीकार किया था और बूचड़खानों पर रोक लगाने के राजनैतिक प्रयासों का कड़ा विरोध किया था। उनके अनुसार, किसान एक अनुत्पादक गाय को बेचकर ही नई गाय खरीदने के पैसे जुटाता है और माँस-उद्योग के अलावा कोई भी उसे एक अनुत्पादक गाय की उतनी धनराशि नहीं दे सकता। किसान जानता है कि दूध का मतलब माँस ही है। यदि माँस उद्योग को बंद कर दिया जाये तो डेयरी उद्योग भी बंद हो जायेगा। यह सच है कि केवल गोबर और गौमूत्र बेचकर एक अनुत्पादक शुष्क गाय के लिए चारा नही जुटाया जा सकता है।

(ix) इसी प्रकार गर्भवती गाय से पैदा होने वाले नर-बछड़े का डेयरी उद्योग को कोई फायदा नहीं होता। अतः उसके मुफ्त चारा-पानी का बंदोबस्त कोई नहीं कर सकता। उसका ‘उपयोग’ तो बीफ़ और नरम-नरम मुलायम कॉफ़-लैदर पैदा करने में ही सर्वोत्तम है! अतः उसके पैदा होते ही तड़पा-तड़पा कर मारने के लिए उसे मौत की कतार में खड़ा कर दिया जाता है। यह सीधे तौर पर हमारे दूध पीने का ही परिणाम है।

(x) समाज में कई प्रकार की भ्रान्तियाँ व्याप्त है। उनमें से एक जो हमें बचपन से ही स्कूलों में पढ़ाई जाती है, वो है : गाय हमें दूध “देती” है। बार-बार इसको दोहराने से हम सही तथ्य को ही भूल जाते हैं। यदि हम वनों में विचरण करने वाली एक मुक्त गाय का दूध दुहने का प्रयत्न करें, तो वह हमें केवल एक ही चीज दे सकती है, और वह है लात! कोई भी गाय हमें स्वेच्छा से दूध नहीं देती है। इसके लिए तो उसे मजबूर ही किया जाता है। गाय का दूध मानव की की लूट है। बल्कि दूध को लूट कहना भी कमतर होगा क्योंकि लूट तो भौतिक संपदा की होती है, जबकि दूध एक जैविक उत्पाद है। एक बेबस माँ के स्तन से अपने नवजात के लिए स्रावित इस जैविक द्रव को हथियाना, उसी के धोखेबाज़ सरंक्षक द्वारा की गई ज्यादती है। दूध का हरेक ग्राहक इस कुकृत्य में उसका भागीदार है।

(xi) क्या आपने अपने दूध के ग्लास का कभी विश्लेषण किया? गाय का दूध पीने वाले व्यक्ति को पता होना चाहिए कि एक ग्लास दूध के निमित्त औसतन एक गाय का लगभग 25 ग्राम छंटाई किया हुआ (ड्रेस्ड और बोनलेस) गौमाँस और 10 मि.लि. खून उत्पादित होता है। एक गाय से 40 से 50 महिने तक दूध दुहने के लिए उसे स्वयं अपनी और अपने पाँच नवजात बच्चों की मौत का मुँह देखना पड़ता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान सन् 1912 से गाय के दूध का आजीवन त्याग कर दिया था। दूध पीने को उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी ट्रेज़डी बताया था।

“दूध एक पशु-उत्पाद है और शाकाहारी भोजन में इसे किसी भी रूप में शामिल नहीं किया जा सकता।”
-महात्मा गाँधी

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धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी



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